भदंत आनंद कौसल्यायन का जीवन परिचय | Bhadant Anand Kausalyayan Ka Jivan Parichay

भदंत आनंद कौसल्यायन का जीवन परिचय | Bhadant Anand Kausalyayan Ka Jivan Parichay

बौद्ध धर्म प्रचारक एवं लेखक भदन्त आनंद कौसल्यायन का जन्म सन 1905 में पंजाब प्रान्त के अम्बाला जिले के सोहाना गांव में हुआ था। इनके बचपन का नाम हरनाम दास था। Bhadant Anand Kausalyayan जी ने लाहौर के नेशनल कॉलेज से अपने ग्रेजुएशन बी. ए. किया। हिंदी साहित्य में अनन्य रूचि रखने वाले कौसल्यायन जी बौद्ध धर्म के अनुयायी होने के साथ-साथ बौद्ध भिक्षु  भी थे। उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए देश-विदेश के बहुत यात्राएं की और अपने सारा जीवन बौद्ध धर्म एक प्रचार में समर्पित कर दिया। 

भदंत आनंद कौसल्यायन जी लम्बे समय तक महात्मा गाँधी जी के साथ वर्धा में रहे। वे गाँधी जी के विचारों और कार्यों से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने हिंदी साहित्य सम्मलेन, प्रयाग और राष्ट्र भाषा प्रचार समिति के सहयोग से हिंदी भाषा के उत्थान के लिए लगातार कार्य किया और विदेशों में भी हिंदी के महत्त्व को बढ़ावा दिया।  सन 1988 में हिंदी साहित्य के महान लेखक भदन्त आनद कौसल्यायन जी का निधन हो गया और वे अपने हिंदी साहित्य के कार्यो के माध्यम से अमर हो गए।


भदंत आनंद कौसल्यायन जी की साहित्यिक कृतियां एवं विशेषताएं 

भिक्षु के पत्र, जो भूल ना सका, आह! ऐसी दरिद्रता, बहानेबाजी, यदि बाबा ना होते, रेल का टिकट, कहाँ क्या देखा आदि Bhadant Anand Kausalyayan जी की प्रमुख साहित्यिक लेख एवं पुस्तकें हैं। उन्होंने 20 से अधिक पुस्तकें लिखी जिनमे बौद्धधर्म-दर्शन सम्बंधित कई ग्रंथ हैं। बौद्धधर्म-दर्शन सम्बंधित ग्रथों में जातक कथाओं का अनुवाद विशेष उल्लेखनीय है। उन्होंने निबंध, संस्मरण और यात्रा वृतांत बहुत ही सरल, सहज और बोलचाल की भाषा में लिखे जो काफी चर्चित रहे।

भदंत आनंद कौसल्यायन का जीवन परिचय | Bhadant Anand Kausalyayan Ka Jivan Parichay


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