भारतेन्दु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय | Bhartendu Harishchandra Ka Jivan Parichay
आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह भारतेन्दु हरिश्चंद्र का जन्म 9 सितंबर 1850 को वाराणसी उत्तर प्रदेश में हुआ था। वे देश-प्रेम और क्रांति-चेतना से समृद्ध व्यक्तित्व थे। किशोरावस्था में ही Bhartendu Harishchandra जी ने भारत की दुर्दशा का त्रासद अनुभव कर लिया था। इसीलिए वे पुनर्जागरण की चेतना के अप्रतिम नायक थे। बंगाल पुनर्जागरण के विशिष्ट नायक ईश्वरचंद्र विद्यासागर से उनका अंतरंग सम्बन्ध था। उन्होंने हिंदी साहित्य को आलोकित करने के लिए जीवन पर्यन्त कार्य किया। भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी ने अपने समकालीन रचनाकारों को प्रोत्साहित किया। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित करने के साथ-साथ विविध विधाओं में साहित्य रचना की। हिंदी पत्रकारिता, काव्य और नाटक के क्षेत्र में उनका बहुमूल्य योगदान रहा। 6 जनवरी 1885 को भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी इस दुनिया को छोड़कर सदा के लिए अमर हो गए।
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भारतेन्दु हरिश्चंद्र का साहित्यिक परिचय | Bharttendu Harishchandra Ka Sahityik Parichay
हिंदी साहित्य के उन्नति में वृहत योगदान के कारण ही 1857 से 1900 तक के काल को भारतेन्दु युग के नाम से जाना जाता है। मात्र 15 वर्ष की उम्र से भारतेन्दु जी ने साहित्य सेवा प्रारम्भ कर दी थी और 18 वर्ष की उम्र में कविवचनसुधा नामक पत्रिका निकाली।
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भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी ने हरिश्चंद्र मैगजीन का संपादन किया जो बाद में हरिश्चंद्र चन्द्रिका नाम से प्रकाशित होने लगी। उन्होंने स्त्री-शिक्षा के लिए बाला बोधिनी पत्रिका का प्रकाशन किया। उन्होंने बांग्ला नाटकों धनंजय विजय, विद्या सुन्दर, पाखंड विडंबन, सत्य हरिश्चंद्र, मुद्राराक्षस आदि का अनुवाद भी किया।
भारतेन्दु हरिश्चंद्र की साहित्यिक कृतियां | Bhartendu Harishchandra Ki Sahityik Kritiya
वैदिकि हिंसा हिंसा न भवति, श्री चन्द्रावली, भारत दुर्दशा, अंधेर नगरी, नील देवी आदि Bhartendu Harishchandra जी के प्रमुख मौलिक नाटक हैं।
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है ?, कश्मीर कुसुम, संगीत सार, स्वर्ग में विचार सभा, काल चक्र इत्यादि भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी के प्रमुख निबंध संग्रह हैं।
विद्यासुंदर, पाखंड विडम्बन, धनंजय विजय, कर्पूर मंजरी, भारत जननी, मुद्राराक्षस आदि भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी के प्रमुख अनुदित नाट्य रचनाएं हैं।
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